यूसुफ के चैट बॉक्स से मुझे बहुत मासूम कविताएं मिलती हैं. वो कविताओं में ही बातें होती हैं उस से... आज एक और कविता मिली है जो उस ने 19 अगस्त को 'कही' ......
तारे
एक, दो, तीन, चार...
.
दस, बीस, सौ, हज़ार...
अनगिनत, असंख्य
कोई चमकीले,
कोई धुँधले
कोई चलते
कोई दौड़ते
कोई दौड़ते-दौड़ते भागते
कुछ रहते खड़े
आसमान पर दिखते
रोज यह तारे…!
छत पर लेटे-लेटे
बिस्तर में दुबके
अन्धेरे में साफ साफ देखते तारों को
और हिसाब लगाते तारों के गिरने का
कि वह गिरता तो
सीधा गिरता मेरे छाती पर
अपनी नजरों से खींची रेखाओं पर
इतना यकीन होता
लगता वह चमकीला गिरता
मेरे घुटनों पर गिरता
और वह जो
कभी धुंधलाता
कभी चुंधियाता
कभी हिलता-डुलता सा लगता
गिरता तो सिरहाने ही गिरता
पर भाई का भी दावा होता
कि उस के कंधे पर गिरता ..!
गर्मियों की छुट्टियाँ खत्म
और तारों का खेल भी ..
तारों का निकलना तो निश्चित रहा
वक्त के साथ
हमारा खेल बदल गया ...!
आज होम टाउन एल टी सी पर
फुर्सत में
नये मकान की खिड़की पर बैठा
मोटे चश्मे के भीतर से
बिटिया के साथ उन्ही
तारों को देखता हूँ
तो सोचता हूँ
अपने घुटने, अपनी छाती और
भाई के कंधों के बारे
कि कितने विशाल थे
और
यह तारे कितने छोटे..!
तारे
- यूसुफ
एक, दो, तीन, चार...
.
दस, बीस, सौ, हज़ार...
अनगिनत, असंख्य
कोई चमकीले,
कोई धुँधले
कोई चलते
कोई दौड़ते
कोई दौड़ते-दौड़ते भागते
कुछ रहते खड़े
आसमान पर दिखते
रोज यह तारे…!
छत पर लेटे-लेटे
बिस्तर में दुबके
अन्धेरे में साफ साफ देखते तारों को
और हिसाब लगाते तारों के गिरने का
कि वह गिरता तो
सीधा गिरता मेरे छाती पर
अपनी नजरों से खींची रेखाओं पर
इतना यकीन होता
लगता वह चमकीला गिरता
मेरे घुटनों पर गिरता
और वह जो
कभी धुंधलाता
कभी चुंधियाता
कभी हिलता-डुलता सा लगता
गिरता तो सिरहाने ही गिरता
पर भाई का भी दावा होता
कि उस के कंधे पर गिरता ..!
गर्मियों की छुट्टियाँ खत्म
और तारों का खेल भी ..
तारों का निकलना तो निश्चित रहा
वक्त के साथ
हमारा खेल बदल गया ...!
आज होम टाउन एल टी सी पर
फुर्सत में
नये मकान की खिड़की पर बैठा
मोटे चश्मे के भीतर से
बिटिया के साथ उन्ही
तारों को देखता हूँ
तो सोचता हूँ
अपने घुटने, अपनी छाती और
भाई के कंधों के बारे
कि कितने विशाल थे
और
यह तारे कितने छोटे..!