डॉ.बी.एस. रावल
बेचारे
आश्चर्यजनक, किंतु सत्य. यह एक सच्ची घटना है . ऐसी घटनाएं मुद्दतों तक भुलाई नहीं जा सकती. इस दुनिया में किसी अच्छे काम का प्रतिफल हमेशा ही ऊँचे और रसूख वाले लोग छीन लेते हैं , जबकि उन का योगदान शून्य के बराबर होता है. उन में इतनी भी दयानतदारी नहीं होती कि एक ईमानदार वर्कर की तारीफ करें या उस की पीठ ही थपथपा दें.
मई 1973 में भारत के राष्ट्रपति श्री वी.वी.गिरि मनाली में छुट्टियाँ मनाने आए थे. मनाली के छोटे से कस्बे में बड़ी हलचल थी. टूरिस्ट सीज़न अपने चरम पर था . महामहिम के मनाली प्रवास को सफल बनाने के लिए हिमाचल प्रदेश केबिनेट और प्रशासन जी जान से जुटी थी. प्रदेश के विभिन्न भागों से वर्दियों और सादे कपड़ों में वाकी-टाकी वाले सुरक्षा कर्मी तैनात किए गए थे. नाहन तक से एम्बुलेंस और दमकल बुलाए गए थे.
श्री गिरि हर सुबह वशिष्ठ के गर्म चश्मे में स्नान करने जाते. दोपहर बाद वे निकटवर्ती पर्यटन स्थलों को घूमने निकल जाते, जैसे कि- हिडिम्बा मन्दिर, लॉग हट्स, नगर कासल, रेरिख़ आर्ट गैलरी, नेहरू कुण्ड, और राहला फाल इत्यादि.कभी स्कूली बच्चों द्वारा साँस्कृतिक कार्य्क्रम प्रस्तुत किया जाता और कहीं कुल्लू और मनाली के ग्रामीणों द्वारा सिविक रिसेप्शन दिए जा रहे थे.
इसी बीच प्राचीन कुल्लू राज्य की राजधानी नग्गर में शाड़ी जातर नामक उत्सव मनाया जा रहा था. 23 मई को मैं डॉ जे एस ठाकुर और उन के रिश्तेदारों के साथ उत्सव देखने नग्गर जा रहा था. उन दिनों मनाली से नग्गर सड़क पक्की नहीं थी और हमारे ड्राईवर महोदय हमारे विनती करने पर भी हाईवे वाला लम्बा रूट अपनाने को तय्यार नहीं थे जो पतली कुहुल हो कर जाता था.उसे हमारे कपड़ों उतनी फिकर नहीं थी जितनी कि अपने लॉग बुक की. नग्गर पहुँचते ही हम लोक निर्माण विभाग के रेस्ट हाऊस में घुस गए कि कपड़ों पर से धूल झाड़ लें और हाथ मुँह धो लें. लाऊड्स्पीकर पर लोक धुनों की ऊँची ध्वनियाँ सुनाई दे रही थीं. जैसे ही हम रेस्ट हाऊस से बाहर निकले, एक स्थानीय आदमी दौड़ता हुआ मेरे पास आया (वह मुझे इस लिए पह्चान गया कि साल भर पहले मैंने यहाँ कुछ महीने जॉब वेकेंसी पर काम किया था) बताने लगा कि मेले में बहुत सारे लोगों को उल्टियाँ और टट्टियाँ लगीं हैं. उन्हे डिस्पेंसरी पहुँचाया जा रहा है. हमें यह समझते देर नहीं लगी कि फूड प्वाईज़निंग हो गई है. मैं और डॉ. ठाकुर तुरंत मरीज़ों को देखने चल पड़े. कुल्लू से मेला देखने आए हमारे कुछ नर्स तथा पशु पालन महकमे के कुछ लोग तथा हमारे स्थानीय स्टाफ के लोग हमारी मदद कर रहे थे. मरीज़ों मे अधिकतर औरतें और बच्चे थे जो प्राय: चटपटी चीज़ों के शौकीन हुआ करते हैं.
हम ने तुरंत एक नमक की बोरी खरीदी और नमक का गाढ़ा घोल तय्यार किया . बगैर किसी जात पात का भेदभाव किए,( जिस के प्रति यहाँ के लोग बेहद संवेदनशील होतें हैं) एक ही मग् से यह घोल सभी मरीज़ों को पिलाया गया.. उस मग् ने एक पवित्र ब्राह्मण से ले कर अछूत तक के होंठ छू लिए होंगे. तमाम ज़रूरी और जीवन रक्षक दवाईयाँ उन्हे तुरत-फुरत दी गईं. यहाँ तक कि स्टेरिलिज़ेशन के लिए भी वक़्त नहीं था. सब से खराब बात यह थी कि भीड़ बेकाबू होती जा रही थी. उन में से आधे लोग तो शराब के नशे में मस्त थे और उन्हें अपने भाई बन्धुओं की कोई चिंता नहीं थी. और् जो नशे में नहीं भी थे, वे भी बस तमाशा देख रहे थे. मरीज़ों की संख्या 80 के करीब पहुँच गई. स्वास्थ्य और पशुपालन विभाग के वालियंटरों की मदद से किसी तरह हालात पर काबू पा लिया गया. मैं ने डॉ. ठाकुर से कहा कि मंच पर मंत्री जी( जो मेले के मुख्य अतिथि थे) के माध्यम से यह घोषणा कर दी जाए कि लोग मेले में लोग कुछ भी न खाएं. लेकिन मंत्री जी को इस बात का पता चला तो उन्हों ने डॉ. ठाकुर को दवाईयों के लिए कुल्लू भेज दिया. जब कि मौके पर मेरी मदद के लिए उन की सख्त ज़रूरत थी. शाम साढ़े छह के आस पास हालात कुछ सामान्य हुए. इस बीच मैंने वक़्त निकाल कर कुल्लू और मनाली मे अपने वरिष्ठ अधिकारियों को इस घटना की जानकारी दी और मदद के लिए गुहार लगाई. उस के बाद मैं खुद मंत्री जी के पास गया और दुकाने बन्द करवाने तथा अन्य ज़रूरी घोषणाएं करवाने की प्रार्थना की. मंत्री जी ने गाँव के प्रधान को मेरे साथ जाने के आदेश दिए, कि उन के साथ रहने से हमें दुकाने बन्द करवाने में दिक्कत न आए. प्रधान अनमने भाव से मेरे साथ चल पड़ा. कॉलेज के छात्रों ने इस काम मे हमारी बड़ी मदद की.कुछ दुकानदारों ने हमारी बात मानने से इंकार कर दिया . लेकिन उन्हे जब धमकाया गया कि उन के खाद्य पदार्थों का सेंपल लिया जाएगा तो वे मान गए. जब हम डिस्पेंसरी के प्रांगण में पहुँचे तो यह देख कर मैं बहुत निराश हुआ कि प्रधान जी दुबारा मुख्य अतिथि के बगल वाली सीट पे विराज मान थे. न ही मंत्री जी ने डिस्पेंसरी में आ कर मरीज़ों से मिलने या सांत्वना प्रकट करने की ज़रूरत समझी.. लोगों के लिए ज़िन्दगी और मौत का सवाल था लेकिन मंत्री जी नृत्य प्रेमी थे. वे मंच पर ही जमे रहे और लोकनृत्य का आनन्द उठाते रहे. जब कि हम लोग चीखते, चिल्लाते, उल्टियाँ और टट्टिया करते मरीज़ों से भरे कमरों में काम कर रहे थे.
शाम घिरते घिरते डॉ. ठाकुर , कुल्लू से एक मेडिकल ऑफिसर के साथ पहुँचे साथ ही मनाली से डॆप्युटी सी.एम. ओ. भी पहुँच गए. फिर हम सब ने मिलकर मरीज़ों की एक बार फिर से जाँच की. 13 मरीज़ ऐसे थे जिन को कुल्लू अस्पताल पहुँचाना ज़रूरी था. बाकियों को दवाईयाँ दे कर छुट्टी दे दी गई.
इस बीच मेला खत्म हो गया. मंत्री जी ने सीधे मुख्य सचिव को फोन लगाया जो उस समय मनाली में थे. उन्हों ने आदेश दिया कि मरीज़ों के लिए तुरंत गाड़ियों का प्रबन्ध किया जाए. अचानक कारों और जीपों के काफिले वहाँ पहुँच गए. प्रशासन हरकत में आ गई थी. हर अधिकारी अपना नम्बर बनाने के चक्कर में था. गम्भीर मरीज़ों को वहाँ से शिफ्ट करने से पहले खूब हो हल्ला मचा. सी.एम.ओ. कुल्लू के आदेश पर सभी डॉक्टरों और नर्सों को बुलाया गया. और कुल्लू अस्पताल में पूरा एक वार्ड इन मरीज़ों के लिए खाली कर लिया गया. मरीज़ों की तौरंत जाँच की गई. उन्हें इंट्रावेनस ड्रिप चढ़ाया गया. ईश्वर की कृपा और हमारी मेहनत से किसी की जान नही गई.
फिर तो हर अधिकारी अपनी कार्य कुशलता दिखाने के लिए कोई न कोई मरीज़ ले कर पहुँचने लगा. जबकि इन मरीज़ों को नग्गर मे ही देख लिया गया था, और किसी चिकित्सा की ज़रूरत नही थी.अंततः वहाँ इतनी भीड़ हो गई कि उपायुक्त कार्यालय से दरियाँ और पुलिस लाईंसे कम्बल तक मँगवाने पड़े.
आधी रात के बाद हम मनाली लौट गए. मनाली पहुँच कर मेरे वरिष्ठ सहकर्मी ने अगली सुबह राष्ट्रपति महोदय के साथ् मेरी ड्यूटी लगा दी, क्यों कि वे स्वयम थक् गए थे.
अगली सुबह जब मैं ड्यूटी खत्म कर वशिष्ठ बाथ से लौट रहा था तो मनाली बाज़ार में रुका. एक जगह मंत्री महोदय् को कुछ राज्य स्तरीय अधिकारियों से घिरे हुए देखा .मैं ने उन्हे यह कहते हुए सुना: “ अरे मैं था वहाँ. ....वर्ना वहाँ तो हंगामा.....पब्लिक घबराई हुई...... डॉक्टर घबराए हुए.....मैं आया, टेलीफोन पर बैठा ..... इधर फोन.... उधर फोन ...... सब ठीक ठाक हो गया .... हा...हा....हा...हा.” लोक संपर्क विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने मुझे वहाँ से गुज़रते देखा तो बात मे दखल देते हुए कहा , “ सर, इस डॉक्टर ने वहाँ बड़ा अच्छा काम किया....”
मंत्री जी सकपका गए . अपने कन्धों के ऊपर से मेरी ओर देखते हुए बड़े अनौपचारिक अन्दाज़ में बोले “ हाँ, हाँ, ये भी थे बेचारे.....”
पुनश्च:
25 मई को दी ट्रिब्यून चण्डीगढ़ ने इस नग्गर मे फूड प्वाईज़निंग की इस घटना की एक संक्षिप्त सी खबर दी. जिस मे यह कह कर मंत्री महोदय की तारीफ की गई कि उन की व्यक्तिगत देख् रेख मे मरीज़ों को ज़िला अस्पताल पहुँचाया गया और इस तरह् कोई केजुअलिटी नहीं हुई........... माई फुट!
Julley to all Lahulian & Spitians around the world, this is an open forum for all to share their views/news/various topics and imp. Messages which are considered for betterment of our motherland and general public/members, NO obscene, abusive photos & languages are permitted in this platform. Invite, Inform, Encourage your friends & relatives to join this forum.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
2 comments:
sir
yahi is desh ki bidambana hai
mehnat koi karta hai
credit koi or le jata hai
asli baat to ye hai ki u did ur part
let others to say what they have to say
My foot too.... ! I liked this memoir' and yes i am fairly convinced ! Thats how things move !
Post a Comment