Saturday, October 15, 2011

इस बार मैं कुल्लू आ कर नहीं पछताया।


कुल्लू मे पिछले दिनो कौन सा बड़ा ईवेंट हुआ ? कोई पूछे तो एक सहज उत्तर होगा -- दशहरा ! अंतर्राष्ट्रीय लोक नृत्य उत्सव । श्री रघुनाथ भगवान जी की रथ यात्रा, राजा जी की पालकी और 365 देवताओं का उन्माद पूर्ण महा मिलन । सरकारी प्रदर्शनियाँ और गैर सरकारी वेराईटी शोज़. गगन चुम्बी हंडोले और भीमकाय *डोम* . अचार से ले कर कार तक का कारोबार . शहरों से आये हज़ारों दुकानदार और गाँवों से उतरे लाखों किसान . छोटे मोटे उत्पादों के बड़े बड़े खरीददार और बड़े बड़े उत्पादों के छोटे मोटे खरीद दार . करोड़ों के वारे न्यारे , अरबों का घमासान ! सच पूछो तो इस कस्बानुमा पहाड़ी शहर के लिए दशहरा एक महत्वपूर्ण ईवेंट होता है. एक बड़ा नाटक. जिस का स्थानीय लोग साल भर बेसब्री से इंतज़ार करते हैं , और जिस की खुमार मे साल के बचे हुए दिन गुज़ार लेते हैं । चींटी को *कण* , हाथी को *मण* ...........इस महाउत्सव मे जिस को जो चाहिए वो मिलता है.

लेकिन जैसा कि प्रायः हर *ग्रो* करते हुए शहर के साथ होता है , चन्द असंतुष्ट लोग यहाँ भी छूट ही जाते हैं जिन्हे उनकी मनचाही खुराक नही मिल पाती. मैं भी उन खब्ती लोगों मे से एक हूँ . अव्वल तो इस ड्रामे में शामिल होने आता ही नही ; गलती से आ भी जाता हूँ तो साल भर पछ्ताता रहता हूँ. और आज यह पोस्ट इस लिए लिख रहा हूँ कि आप सब से यह शेयर कर सकूँ कि इस बार मैं कुल्लू आ कर नहीं पछताया।

वह इस लिए कि ढाल पुर मैदान के एक कोने मे इस महानाटक के ठीक समानंतर एक नाटक और चल रहा था। विजय दान देथा की चर्चित कहानी पर आधारित नाटक --" नागिन तेरा वंश बढ़े" . लाईब्रेरी की रीडिंग रूम को अस्थायी थियेटर मे कंवर्ट किया गया था। प्रकाश और ध्वनि प्रभावों का सटीक इस्तेमाल कुल्लू के दर्शकों ने शायद पहली बार देखा . दो चार स्पॉट लाईट्स थे, दो म्यूज़िक एकम्पनिस्ट ; जिन्हो ने हर्मोनियम , सारंगी , ढोलक, तबला , और सिंबल्ज़ प्रयोग का बेहद कलात्मकता के साथ किया । युवा अभिनेताओं की अनगढ़ता को इन *टूल्ज़* के माध्यम से बहुत नफासत के साथ कवर किया गया। यह लगभग एक प्रोफेशनल क़िस्म काम था। बहुत व्यवस्थित, अनुशासित , और फोकस्ड. बहुत अद्भुत और मेरे लिए बहुत बड़ा। एक पवित्र उत्सव जैसा । इस उत्सव के देवी देवता थे स्थानीय कॉलेज के 32 मेधावी छात्र अभिनेता .

केन्द्रीय पात्र नागिन की भूमिका मे ज्योति ने बहुत परिपक्व काम किया । एक अमेच्योर कलाकार की हैसियत से निश्चित तौर पर *फ्लॉलेस्*. मंच पर उस की उपस्थिति दर्शक को अनायास ही बाँध कर रख देती थी। कथा वाचक की भूमिका मे राज और सेठानी की भूमिका मे आरती की आवाज़ प्रभाव शाली थी। मेधा के अभिनय को भी दर्शकों ने खूब सराहा.

इस अनुष्ठान के रघुनाथ जी थे - NCERT (CIET wing) से सम्बद्ध पटकथा लेखक व रंगकर्मी अवतार साहनी । उन्हों ने स्वयं ही मूल कथा का नाट्य रूपांतरण किया , सम्वाद और गीत लिखे, संगीत भी कम्पोज़ किया। और पूरे शो मे उन की इंवॉल्वमेंट अभिभूत करने वाली थी। उन्होने बताया कि कुल्लू मे टेलेंट की कमी नहीं . सम्भावनाए अपार हैं. अलबत्ता हिन्दी उच्चारण, लहजे, और डिक्शन के मामले मे उन्हे काफी मशक्कत करनी पड़ी।

राजा की पालकी मे मुझे स्थानीय रंगकर्मी बहस नाट्य मंच की संस्थापक उरसेम लता नज़र आईं। उन्हो ने बताया कि बिना कॉलेज की प्राचार्य डॉ. धनेश्वरी शर्मा और अन्य सहकर्मियों ;सोम नेगी , राकेश राणा और विषेष रूप से लाईब्रेरियन के सकारात्मक रवेय्ये के यह वर्कशॉप सफल नही हो सकता था .

और इस मेले मे अथाह मानवीय सम्वेदनाओं का कारोबार हुआ।
और गहन जीवनानुभवों और विचारों का लेन देन हुआ।
और कुल्लू का दर्शक विजय्दान देथा जैसे लेखक के काम से परिचित हुआ.

3 comments:

Roshan Lal Thakur said...

gud hai sir jee me to bina kullu aye hi es ka swad le liya danyabad

SANDEEP PANWAR said...

अगली बार ही सही।

SANDEEP PANWAR said...

आपने इतना जोरदार लिखा है कि बार-बार पढने को जी करता है