Wednesday, July 25, 2012

मंज़ूर शुदा सरकारी अहाते में एक भाई बहुत “हाई” था


जुलाई 19, 2012

यह  आधुनिक पटनी भाषा है जिस पर हिन्दी और पंजाबी का बेहद असर है. वाचक भाई एक पब/ रेस्त्राँ में दारू के नशे मे *हाई* है . कुछ दर्ज करने योग्य बातें मैंने लिखी हैं . कि कभी काम आएंगीं. इन डायलॉग्ज़ मे तकिया कलामों और रसीली बोलियों के अलावा रोचक स्वीकारोक्तियाँ थीं , अद्भुत दावे थे ,और महीन मनोवृत्तियाँ थीं. मुझे बीयर के साथ इस का ऐसा स्वाद लगा कि मन ही मन इन बातों को एक कविता मे अरेंज करने लगा . अति हो गई तो एक पेपर नेप्किन पर इसे दर्ज कर डाला .


बड़ा बनने की बात नहीं है
सब से बड़ी चीज़ है इज़्ज़त , मश्ता ?
गलत साङ गलत होता है
है तो है भई
उस में क्या डरना ?
कोई क़तल थोड़ी किया
अपणा अपणा देखणा पड़ता है मश्ता ?
कल दिन क्या पता ?
दे भाई यह रिजक है
कुछ किया है मैंने तो
माँ कसम !
उस में झूठ क्या बोलणा
इतना तो मैं बोला था
साफ गप्पा
सब कुछ मंत्री को देणा है तो मैं ने क्या खाणा ?
क्यों ?
धन्दा है !!
उसका भी मेरा भी
बच्चे पालने हैं
लाड़ी को खुश रखणा है
मश्ता ? उस मे क्या छुपाणा ?
पता है सब को
सब करते हैं
मैं कोई केल्ला थोड़ी हूँ ?
इसी लिए अपणा एक ही रक्खा है
मोटा हिसाब
और मैं नईं डरता लाड़ी - लूड़ी से
न उस के बाप - बूप से
बाप कसम !
अब्भी फोन कर सकता हूँ गलफ्रेंड को
लाड़ी के सामणे भी
माँ चो...... भाई ने देखा है
हप्सिआ भाई ?
लाड़ी भी सोचती होगी
तू है क्या
और क्या तेरा शक्कल है
फिर भी
भई रखते होते हैं !

अपणा शुरू से ही ऐसा है
छोटे  भाई 
अब तो बुड्ढा हो गया माँ चो ........
बेटा भी जिण्ड हो गया है
मेरा जूता नईं आता उस को
उस को कंपणी में फिट करना है यार
ला भई खोल फिर एक बीयर
भाई के लिए
पोलर बीयर नई
मोज़र बीयर .......
भेंचो ......
क्या बोलणा
गलत साङ गलत होता है !
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मश्ता = नहीं ? ( =क्या ऐसा नहीं है ?) 
साङ = असर्टिव अभिव्यक्ति 
दे = यह ( संकेत करते हुए )
रिजक = धन्धा , रोटी कमाने का साधन 
गप्पा = बात 
लाड़ी = बीबी 
केल्ला = अकेला 
हप्सिआ= क्या यह झूठ है ? 
शक्कल = शक़्ल 
जिंड = हट्टा कट्टा जवान 
मोज़र बीयर = मोज़र बेयर , लाहुल मे जल विद्युत परियोजनाऑं की शुरुआत करने वाली एक प्रमुख कंपनी 

5 comments:

Rati said...

acchi lagi, lekin tippani bhi dijiye..

Roshan Lal Thakur said...

bohot achha hai sahaab muje toh byankar laga kya baat hai...............

अजेय said...
This comment has been removed by the author.
chandan said...

प्रचलित बोली मे लिखी कविता साफ साफ झलक देती है अपने इलाके की .......

Anup sethi said...

खूब .
पेंटिंग में जैसे किसी विषय की स्‍टडी होती है यानी उसे पेंसिल आदि से उकेर लेते हैं वैसे ही यह भी है. और सर यह वेरिफिकेशन हटा नहीं सकते मश्‍ता