Monday, March 6, 2017

EVEREST THE ULTIMATE

EVEREST THE ULTIMATE

अपनी असीम उँचाई 8850 मीटर (29035) के लिए दुनिया भर में अपनी चमक बिखेर रहा माउण्ट एवरेस्ट तिब्बत में कोमोलुनग्मा तथा नेपाल मे सागर माता के नाम से जाना जाता है । परन्तु बहुत कम लोग यह जानते है कि विश्‍व का उच्चतम तथा अत्यंत भंयकर पर्वत का नाम कैसे पडा या मिला । यह 1849 से 1855 के दौरान की बात है जब नेपाल में स्थित हिमालय की चोटियों को सर्वे आफ इण्डिया ने पहली बार नापा था । उस समय किसी ने भी यह कल्पना तक नही की थी कि संसार की सबसे उँची चोटी अपने सामने पडी छोटी चोटी द्धारा छुपी हुई है । उस समय क्योंकि अधिकतम चोटियों का कोई नाम नही था। इसलिये इस चोटी का नाम अस्थाई रूप से 15 (पन्द्रह) रखा गया था । संसार की उच्चतम चोटी को खोजने के बाद इस शक्ति चोटी के लिए उसके अनुरूप नाम की खोज आरम्भ हुई । इस मुददे पर 10 साल तक वाद -विवाद व विचार विमर्श चलता रहा तथा बहुत से नाम सुझाए गए ।

          कर्नल एंडू वाघ जो कि उस समय भारत के सर्वयर जनरल थे ने अपने उप पदाधिकारियों कर्नल हेनरी थुलियार और मुख्य गणक राधानाथ सिकन्दर के साथ परामर्ष करके यह निर्णय लिया कि संसार की उस उच्चतम चोटी को खोजने वाले तथा अपने पूर्वाधिकारी सर जार्ज एवरेस्ट जो पहले भारत के सर्वयर जनरल थे के नाम पर उस चोटी का नामकरण किया जाए । माउण्ट नाम (पदवी) कर्नल वाघ द्धारा एक निश्चित चोटी के लिए रखा गया । एक साल बाद ऐवरेस्ट का नाम बदल कर माउण्ट एवरेस्ट रखा गया ।

          कैप्टन एस.एस.कोहली उस समय जल सेना से प्रतिनियुक्ति पर भा0ति0सी0पु0 में थे, ने सन 1064 से आरम्भ हुई आई0टी0बी0पी0 में पर्वतरोहण तैनाती परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए पहली साहसिक यात्रा पूर्वी नन्दा देवी तथा त्रिषूली तक सम्पन्न की । इन चोटियों को सफलतापूर्वक नापने के बाद उन्हे तीसरी बार भारतीय पर्वतारोहण का नेतृत्व में भारतीय नौ सदस्यों द्धारा माउण्ट एवरेस्ट नापने का इतिहास रचा गया था । उसके बाद बहुत से पर्वतारोहण भा0ति0सी0पु0 अधिकारियों के नेतृत्व में चलाए गए और अधिकतम मुख्य चोटियों पर आई0टी0बी0पी0  के कर्मियों ने सफलता पूर्वक चढाई की ।

          अब बल का मनोयोग धरती की उच्चतम अटारी के लिए प्रयास करने का था । इसलिए माउंट एवरेस्ट के लिए पर्वतारोहण की योजना बनाई गई । श्री हुकम सिंह अपर उपमहानिरीक्षक के नेतृत्व में सन 1992 में इसे कार्यान्वित किया गया । इस पर्वतारोहण के दौरान आई0टी0बी0पी0 पर्वतारोहियों ने उस शक्तिशाली चोटी पर 10 तथा 12 मई 1992 को चढाई की थी, जिसमें दूसरी भारतीय महिला संतोष यादव भी शामिल थी । चीनी ही पहले लोग थे जिन्होने 25 मई 1960 को उत्तर दिशा से शिखर पर चढने मे सफलता हासिल की थी । तिब्बती महिला धतोंग 27 मई 1975 को शिखर पर पहुँचने वाली प्रथम महिला थी । सन 1992, 1993 तथा 1995 में भी भारतीय पर्वतारोहियों द्धारा चीन की तरफ इस विशालकाय पर्वत पर चढने का प्रयास किया गया । जिनका पश्चिमी बंगाल सरकार द्धारा प्रतिभूति किया गया है । जो कि कोलकाला पर्वतारोहण संघ द्धारा चलाया जा रहा है । दुर्भाग्य से ये पर्वतारोहण शिखर तक नही पहुँच सके । आई0टी0बी0पी0 जो कि पर्वतारोहण के क्षेत्र में हमेशा आगे रहा है, ने इस चुनौती को स्वीकार किया तथा माउण्ट ऐवरेस्ट के लिए पर्वतारोहण की योजना बनाई जो कि 1996 में एवरेस्ट शिखर तक जाने वाले सबसे कठिन उत्तर के रास्ते से कार्यान्वित की गई थी । 25 सदस्यीय दल का नेतृत्व श्री महेन्द्र सिंह, सेनानी (सेवानिवृत) द्धारा सन 1996 में मानसून से पहले के दौरान (Pre mansoon) किया गया था । यह दल आठ सदस्यों को एवरेस्ट के शिखर तक पहुँचने में सफल हुआ । इस तरह से इस रास्ते शिखर को नापने वाले पहले भारतीय बने । इसके बाद बहुत से पर्वतारोहण इस रास्ते से एवरेस्ट तक कार्यान्वित किये जा रहे है । सन 2003 में श्री हरभजन सिंह अपर उपमहानिरीक्षक ने एक और पर्वरोहण का विचार किया । जिसका उददेश्‍य सन 2005 में मानसून के बाद उत्तर के रास्ते एवरेस्ट पर चढने का था । परन्तु चीनीयों द्धारा तकनीकी स्तर पर उठाई गई चन्द आपत्तियों के दौरान चलाई गई 28 सदस्यीय दल जिसमें एक सदस्य आई0बी0 तथा सी0आर0पी0एफ0 से थे, का नेतृत्व श्री हरभजन सिंह उपर उपमहानिरीक्षक ने किया, जिन्हे इस क्षेत्र में विशाल अनुभव प्राप्त था । इस दल को एक साल के लिए कठिनतम प्रशिक्षण ओली पंचाचुली - प्रथम सर्दियों के मौसम की अत्यंत ठंडे वातावरण वाली परिस्थितियों में लेह में स्थित स्टाफ कांगडी पर चढाई की ।
          श्री प्रेम सिंह उप सेनानी के नेतृत्व में पर्वतारोहण के अग्रिम दल को जिसमें दस सदस्य तथा 06 शेरपा थे। तीन भारी वाहनो के साथ  26 मार्च 2006 काठमांडू के लिए रवाना किया गया । इसके अलावा मुख्य दल ने अपने नेता के नेतृत्व में नई दिल्ली से  काठमांडू के लिए 30 मार्च को उडान भरी तथा काठमांडू में अग्रिम दल में शामिल हो गए । काठमांडू में सभी जरूरी औपचारिकताओ को पूरा करने के बाद अग्रिम दल 10 शेरपा के साथ जिनमें 04 नेपाली शेरपा शामिल थे । ने 31 मार्च को 17200 फीट की उँचाई पर स्थित बेस कैम्प के लिए प्रस्थान किया और चार दिन तक चलने के बाद दल 04 अप्रेल को बैस कैम्प मे पहूँचा । मुख्य दल एक बार फिर काठमांडू से लहासा (तिब्बत की राजधानी) के लिए उडा तथा लहासा से बेस कैम्प तक सडक के रास्ते गया तथा 05 अप्रैल को बेस कैम्प में अग्रिम दल के साथ शामिल हो गए ।

          वहां पहुँच कर सामानो को सोर्ट आउट किया व परिस्थितियों के अनुरूप होने में चार -पांच दिन लगे । इस रास्ते से एक फायदा यह है कि व्यक्ति बेस कैम्प तक तो ड्राइव कर सकता है तथा उससे आगे 21400 फीट की उँचाई पर स्थित बेस कैम्प तक के लिए चीनी पर्वतारोही संघ क्षरा यॉक उपलब्ध कराए जाते है । खराब मौसम की परिस्थितियों के कारण 6.7 दिन तक हम योजना के अनुरूप एडवांस बेस कैम्प को लगा सके । एडवांस बेस कैम्प तक का रास्ता आम था । केवल कुछ जगहो को छोडकर खुली पत्थरो से ढकी ढलान से मोरेन स्की व सिरके बीच से होकर जाना पडता है । मुख्य रूप से प्रत्येक को एक ऐसी घाटी से होकर गुजरना था । जिसके रास्ते मे हिमनदियां द्धारा एकत्रित किया हुआ कूडा करकट Seracas तथा Scree था दोनो कैम्पो के बीच की दूर 19 कि0मी0 है तथा इसमें 4000 फीट की चढाई शामिल हे जिसे कोई भी एक साथ में नही कर सकता है । इसलिए इस परेशानी पर विजय प्राप्त करने के लिए हमने 18200 फीट की उँचाई पर एक अन्तरिम कैम्प लगाया । यहाँ पर पर्वतारोही को यह जिम्मेवारी दी गई की वे अपना व्यक्तिगत सामान स्वयं उठायें तथा उपकरणो राशन टेन्ट बर्तन अन्य सामग्री की ढुलाई के लिए यॉक कियाए पर लिए गये ।

          एडवांस बेस कैम्प 21400 फीट की उँचाई पर स्थित पूर्वी रोम्बक ग्‍लेशियर पर लगाया गया । यह पर्वतारोहण सम्‍बन्धि क्रिया कलापो का केन्द्र बिन्दु था तथा उच्चतर कैम्पो तक चढने की योजनाए यही पर बनाई गई थी । मुख्य सदस्यों के अलावा अन्य सभी सदस्यों को उच्चतर कैम्पो मे होने वाली क्रिया कलापो को सहारा देने के लिए यहीं पर रखने हेतु प्राथमिकता दी गई है । इस कैम्प से आगी सभी भारी सामग्री को ढोने की जिम्मेवारी मुख्य सदस्यों एवं  Haps की थी । केवल उच्च तकनिकी दक्षता वाले सदस्य इस केन्द्र से आगे बढ सके । Abc (c-iii से c-iv) (north col) के अलावा बीच का रास्ता ग्‍लेशियर पर से था । जहां पर प्रत्येक को बर्फ की दीवारो Bergchsund, Crevasses तथा Ice ARETE से जूझना पडता है । यद्यपि दोनो कैम्पो के बीच ज्यादा दूरी नही थी । परन्तु नार्थ काल पर पहुँचने के लिए जिन दिक्कतो का सामना करना पडता था । उनसे जुझने के लिए मानसिक ओर शारिरीक श‍क्ति की आवश्‍यकता थी । IV योजना के अनुरूप लगा गया तथा अब हमको भारी चीजों को ढोने तथा C-IV आगे का रास्ता खोलने की चिन्ता थी । क्योकि इस रास्ते से पर्वतारोहण के लिए अधिक उँचाई शामिल थी तथा हवा की गति 100 कि0मी0 प्रति घण्‍टे से ज्यादा होने के कारण प्रत्येक व्यक्ति को अत्यन्त मुश्किल परिस्थितियों का सामना करना पडता था । जहां पर फिसलने तथा हिमनदियों में गिरने का खतरा अधिक था । परन्तु हिमवीर 25750 फीट की उँचाई पर स्थित उत्तरी पर्वत श्रृखला पर अधिक था । हम C-V को लगाने के लिए दृढ निश्‍चयी थे कैम्प 5 से आगे का रास्ता बर्फीली चटटानो तथा बर्फबारी के कारण अधिक कठिन था । ज्यादा उँचाई शामिल होने के कारण चढाई ओर चुनौती बन गई थी । यह कैम्प 37300 फीट उँचाई पर स्थित ढलान पर लगाया जाना था । जिसका उतार –चढाव 80 डिग्री से कम नही था । जिन कठिाइयों का सामना टेंटो को गाडने में होता है । उसकी कोई कल्पना भी नही कर सकता । इस उँचाई पर जीवित रहना आपके पास उपलब्ध आक्‍सीजन की बोतलों पर निर्भर करता है । हम सभी बिना ऑक्सीजन प्रयोग किए कैम्प तक पहुँच तो सके परन्तु बिना ऑक्सीजन के कार्य करने के लिए प्रत्येक को बहुत अधिक शारिरीक तथा मानसिक शक्ति की आवश्‍यकता थी । शिखर पर चढने वाले नौ सदस्यों तथा चार HAPs में रहने के लिए जगह बनाने तथा तीन टेंन्टो को गाडने में 4 घण्टे लगे । हम भाग्यशाली थे कि टैन्टो को गाडते समय तेज हवा तथा आंखें चुधियाने वाली बर्फीली आंधियों का सामना नही करना पडा नही तो यह घातक साबित हो सकता था । क्योकि इतनी उँचाई पर ऐसी तेज हवाओ के बीच टेन्टो को गाडना लगभग असम्भव है । इस प्रकार 9 मई तक सभी कैम्प स्थापित किये जा चुके थे तथा कैम्प 6 जो कि चढाई के लिए अंतिम कैम्प था वहां पर आक्सीजन भोजन सामग्री तथा चढाई में प्रयोग होन वाले उपकरण पहुँचा दिए गए थे ।

यद्यपि सभी कैम्प हमारी योजना के  अनुरूप लगाए गए परन्तु अचानक 10 मई के बाद मौसम खराब होना शुरू हो गया । इसलिए सभी सदस्यों को एडवांस बेस कैम्प में बुला लिए गया तथा पुनः शक्ति अर्जन के लिए बेस कैम्प पर चले गए 11 मई को नोयडा में स्थित विज्ञान तथा प्राद्योगिकी विभाग जो कि हमे बराबर अन्तराल पर मौसम की जानकारी दे रहे थे ने हमे सूचित किया था कि 13 मई के बाद 5-6 दिन के लिए मौसम अनुकूल रह सकता है इसलिए शिखर पर जाने वाला पहला दल जिनका नेतृत्व श्री प्रेम सिंह द्धितीय कमान, उप नेता कर रहे थे को 6 अन्य सदस्यों के साथ जिनमें निरीक्षक वांगचुक शेरपा, उप निरीक्षक जोत सिंह, सिपाही पसांग शेरपा, नवांग, विशालमणी एवं सी0आर0पी0एफ0 के सिपाही किशन के साथ 04 HAPs शामिल थे आगे जाने का कार्य सौपा गया । इस दल ने 13 मई को कैम्प 6 के लिए प्रस्थान किया दल ने C-V पर तथा उससे आगे कम से कम समय रूकने के लिए प्राथमिकता दी । इसलिए उन्होने ब्.ट पर रूकने के बजाए सीधे कैम्प 6 तक जाने का निर्णय किया । यद्यपि दल के सदस्यों को कैम्प 5 को बाईपास करते हुए कैम्प 6 तक सीधे पहुँचने में काफी मुष्किल का सामना करना पडा परन्तु आप यदि दृढ निष्चयी हो तो कुछ भी असम्भव नही है । जो कि इस दल के साथ हुआ और 9 घण्टे लगातार प्रयास करने के बाद हम दोपहर के तीन बजे कैम्प 6 पहुँचे । हमारे पास 4 घण्टे थे जिनमें हमे जगह को तैयार करके टेन्टो को गाडना था । शाम के सात बजे तक  यह तैयार था तथा मेरे द्धारा शिविर दल के प्रत्येक सदस्य जिनमें Haps भी शामिल थे को टेन्ट आंवटित किया गया । 11 बजे तक अंतिम चढाई के लिए बढने का निर्णय किया तथा इस बीच हम मे से प्रत्येक व्यक्ति दिए गए समय में अपने आप को तैयार करने के लिए समर्पित था । इसी बीच मौसम लगातार खराब चल रहा था परन्तु हमें विश्‍वास था कि यह हमारे शिखर पर पहुँचने से पहले साफ हो जाएगा । रात को 1030 बजे हम में से प्रत्येक व्यक्ति तैयार था एक के बाद एक हमने टैन्टो से बाहर आना शुरू कर दिया।

शायद वांगचुक शेरपा तैयार होकर टैन्ट से बाहर आने वाला अंतिम व्यक्ति था । उस समय रात के 1040 बजे थे जब हमने निर्णायक आक्रमण शुरू किया । बँधी रस्सियों पर चलने के लिए सख्‍त अनुशासन का पालन करना जरूरी है हम सभी महान हर्ष और घातक दुर्घटना तक ले जा सकती थी इसलिए प्रत्येक को दूसरे की  चढाई में दखल दिए बिना इस का सख्ती से अनुसरण करना पडता है । हम सब महान वर्ष व उत्साह के साथ उपर चढ रहे थे तथा सभी किसी भी ऐसी सम्भाविंत घटना के प्रति अनभिज्ञ थे जो रास्ते मे कहीं पर भी किसी भी समय घट सकती थी । उसी दौरान वहां पर दो अन्य पर्वतारोहण दल भी थे जो हमारा अनुसरण कर रहे थे उनमें से एक वह था जो हमारे आगे चल रहा था । लगातार हो रही बर्फबारी के अलावा स्टेप 2 तक हमे कोई कठिनाईयों का सामना नही करना पडा सुबह के 6 बजे तक हम सभी स्टेप 2 (28000) फीट के उपर तक पहुँचे तथा उसी समय मौसम भी साफ होना शुरू हुआ । मुझे स्वयं ज्ञान था कि शिखर तक पहुँचने अभी 2 या ढाई घण्टे लगेगें इसके अलावा प्रत्येक सदस्य अपने सामने बर्फ की चादर से लिपटे हुए शक्तिशाली एवरेस्ट को देख सकता था । स्टेप 2 तक पहुँचने के बाद कोई वापिस जाने की सोच भी नही सकता ओर हमें शिखर तक पहुँचने का पूरा विश्‍वास था । नवांग एक जवान ओर उर्जावान कलाईम्बर था जो कि लददाख का रहने वाला था । इसलिए हम कलाईम्बर को यह शिक्षा देते थे कि वो सबके साथ इक्टठे आगे बढे कोई भी यह नही भूल सकता है कि पर्वत पर चढना एक सम्पूर्ण दल का प्रयास है । यह किसी  एक व्यक्ति को तमाशा नही हो सकता मैं यह सोचता हूं कि यह बात उसके दिमाग मे भी थी । इसलिए प्रत्येक 5 मी0 की चढाई के बाद वह पीछे देख रहा था और यह सुनिश्चित कर रहा था कि दूसरे भी उसका अनुसरण कर रहे है । शिखर तक पहुँच कर सुरक्षित कैम्प मे वापिस आने तक के लिए यद्यपि हम सभी पर्याप्त ऑक्‍सीजन की बोतल उठाए हुए थे । परन्तु उनके रिसने जरूरत से ज्यादा खपत होने का डर हमारे दिमाग मे बराबर बना हुआ था । इसलिए चढने के दोरान ऑक्सीजन की कम से कम खपत हो इसके लिए प्रयास किए जा रहे थे परन्तु कभी कभी इसके लिए किसी को भारी मूल्य भी चुकाना पड सकता था ।

इसका अनुभव मे स्टेप-2 (26600) फीट पर चढते समय सबसे कठिन हिस्से से झूमने के दौरान कर चुका था । मुझे वह प्रत्येक क्षण अभी भी ठीक उसी प्रकार से याद है जेसे यह मेरे साथ आज ही गठित हो रहा हो मुझे  याद है ऑक्‍सीजन की कमी तथा घुटन के कारण सूखना शुरू हो गया था यहां तक उस समय कुछ क्षणो के लिए शायद दिमाग ने भी काम करना बंद कर दिया था । परन्तु फिर मेने पाया कि मै भी मृत्युमण्डल क्षेत्र मे था इसलिए इस कठिनाई पर विजय प्राप्त करने के लिए कुछ अधिक प्रयास करने की जरूरत है । इसी प्रकार मेरी इन्द्रियां प्रबल हुई और मैं स्टेप 2 पर लगाई गई एल्युमिनियम की सीढी पर झूमते हुए 15-20 कदम चढ सका कोई क्लाईम्बर स्टेप 2 पर लगी सीढियों का प्रयोग किए बिना एवरेस्ट को नापने की सोच भी नही सकता ।

मैं उन चीनियों को धन्यवाद देता हूँ जिन्होने सन 1974 में पहली बार उन सीढियों के टुकडो को कठिन रास्ते को तय कर वहां लगाया अब वहाँ एक व्यक्ति के द्धारा नई सीढी लगा दी है । जिसे पिछले 10 सालो से हर साल धरती पर उच्चतम अटारी पर चढने के लिए दल लिये जा रहा है । स्टेप – 2 (26600) फिट के उपर पहुँचने पर नवांग ने मुझे पानी की बूंद दी जिससे मुझे तुरन्त शक्ति प्राप्त हुई तुरन्त ही कुछ क्षणो के बाद दल के अन्य सदस्य भी हममें शामिल हो गए । हम सभी ने ऑक्सीजन की दूसरी बोलत को लगा दिया । मैने दल का नेता होने के कारण प्रत्येक व्यक्ति को चारो तरफ से देखा की वे अच्छा महसूस कर रहे हैं या नही ओर आगे चढने की स्थिति में है या नही मुझे उससे संतुष्टि मिली जब मैने प्रत्येक सदस्य के अन्दर एवरेस्ट के इतने पास होने पर हो रही उत्तेजना को अनुभव किया । जैसा कि मैने पहले बताया कि मौसम धीरे -धीरे सुधरना शुरू हुआ तथा हम एक-एक करके संसार के सबसे उँचे शिखर के समीप जा रहे थे । वहां पर 4-5 अन्य व्यक्ति भी थे । जो कि हमसे आगे चढ रहे थे तथा धीरे -धीरे हम भी शिखर के ठिक नीचे उन तक पहुँच सके सुबह 0830 बजे नवांग और मैं अपने दल मे आगे थे जो चढाई के आखिरी पडाव मे पहुंचे वास्तव मे उस केन्द्र से एवरेस्ट के शिखर का सुन्दर एवं पूर्ण दृष्य दिख सकता है । यहां तक की मैं उस चोटी की सुन्दरता का वर्णन श‍ब्दो मे नही कर सकता ।

मै उस श‍क्तिशाली को देख एवं निहार रहा था जिन्हे नेपाली तथा चीनी अलग अलग नाम से पुकारने के साथ सबसे शक्तिशाली मानते है । कोई भी वहां एक जगह पर ज्यादा देर तक खडा नही रह सकता । कुछ मिनट बाद हमने दूसरो की प्रतिक्षा किए बिना चढाई के आखरी चरण पर चढना जारी रखने का निर्णय लिया हमें पता था कि शिखर पर तस्वीर खीचनें वीडियो बनाने तथा ।


Prem Singh DIG ITBP

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