ऐसा इलाका जहां शराब के बिना सारा कार्यक्रम
अधूरा दिखता है। जीं हां,हिमाचल प्रदेश के जनजातीय जिला लाहुल-स्पिति
में शराब को इतनी ज्यादा तरजीह दी जाती है कि पूछिए मत। जैसा कि भारत के कुछ
जनजातीय इलाके अपनी विशिष्ठ रिवाजों के लिए जाने जाते हैं तो लाहुल-स्पिति में भी
सामुहिक समारोहों में शराब का सेवन और रिवाज आम है। शादी-विवाह का समारोह हो
या कोई गेदरिंग,खेतों से
थक कर काम से लौटें हो या कोई मेहमाननवाजी, हर खास मौकों पर शराब परोसना यहां का
रिवाज है। खाली समय में स्थानीय युवा समय व्यतीत करने के लिए ‘’गोची’’ यानि
गेदरिंग करते हैं तो हल्की-फुल्की शराब का सेवन कर अपना मनोरंजन करते हैं। शादियों
में तो पीने वालों की यहां पौ-बारह होती है। दरअसल परम्पराओं के अलावा लाहुल-स्पिति
की जलवायू का असर भी यहां के खान-पान पर बहुत ज्यादा है। विशेषकर शीत ऋतु में व्यापक ठण्ड के चलते शराब का सेवन शरीर के तापमान को बनाए रखने
के लिए जरूरी हो जाता है।
शादी-ब्याह का समारोह तो लाहुल-स्पिति में बिना
शराब के सोची ही नहीं जा सकती क्योंकि मेहमानों का स्वागत शराब से ही किया जाता
है और खान-पान के दौर में शराब का सेवन बहुत ज्यादा होता है और बारातियों को
छका-छका कर खूब पिलाई जाती है।युवा हों या बुढ़े सभी पी के धमाचोकड़ी मचाते हैं और
एक-दूसरे का खूब मनोरंजन भी करते हैं। शराब चढ़ने के बाद नाचने-गाने से बारातीगण
शादी में रौनक ले आते हैं और मस्ती से सराबोर वे ढोल-बांसुरी पर झूम गा कर सब के
नजरों का केन्द्र बन जाते हैं। बारातियों को रास्तों के पड़ावों में पीने के लिए
अलग से शराब ढोई जाती है जिसे ‘’लमछंग’’ कहते हैं। साथ ही मेहमानों और बारातियों
के स्वागत में घरों के बाहर या कमरों में बैठने पर तुरन्त एवं खाने-पीने से पहले
शगुन या शागुण भी किया जाता है जिसे मेजबान लोग पवित्र शुर या जूनिफर के पतों से
शराब के छींटें बिखरा कर करते हैं। बारात में लड़के वालों की तरफ से शराब की भान्ति एक
अन्य नशे वाली पेय पदार्थ जिसे लुगड़ी या चाक्ती कहते हैं को कुछ लड़कियां जो
विशेष परिधान में होती हैं,रिवाज अनुसार बारातियों
को स्वाद चखाती हैं।
परम्पराओं के अनुरूप लाहुल के कई इलाकों में शादी के समारोह में पीने-पीलाने का अपना-अपना विशिष्ट तरीका होता है। कुछ घाटियों में शराब पिलाने का जिम्मा हर कमरों में दो औरतों के जोड़ों को दिया जाता है जो बेहद आकर्षक पोशाक और शाल ओढ़े हुए होती हैं और वे कई बार बारातियों को शरारत में सुई चुभो कर एवं डरा कर भी पिलाते हैं। मकसद साफ रहता है कि खुशी के माहौल में बारातियों को खूब पिलाई जाए। यानि यह कहें कि साकी का महत्व ऐसे खास माहौल में बेहद ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है।
लाहुल की परम्पराओं में शराब का महत्व इस कद्र है कि जब किसी के घर पुत्र जन्म लेता है तो बधाई स्वरूप शराब की बोतल ले जाने की परम्परा है जिसे कारछोल कहते हैं।यानि शराब के बिना सभी रस्में अधूरी हैं।
प्रैक्टीकली कई बार यह भी देखा गया है कि शादियों में न पीने वालों की बजाए पीने वालों की सेवा खूब होती है। सेवादार या मेजबान लोग शराब पीने वालों को खाने-पीने के लिए मीट,चिकन और सलाद वगैरह पेश करते रहते हैं जबकि न पीने वालों को महज मीठी चाय और स्थानीय नमकीन चाय के साथ सन्तुष्ठ रहना पड़ता है। शराब के नशे में झुलने पर पीने वाले गाते हैं,नाचते हैं और गप्पे हांक कर एक-दूसरे का मन बहलाते हैं जबकि न पीने वाले कोने में बैठ कर बोरियत से निहार कर मजबूरी में समय काट रहे होते हैं।
इस बात में कोई दो राय नहीं कि शराब पीने से आदमी खुल जाता है यानि उस की झिझक मिट
जाती है और उसके व्यक्तित्व की एक दूसरी छवि देखने को मिलती है जो सिर्फ और
सिर्फ मनोरंजन करना और बांटना चाहता है। यहां एक बात साफ कर लें कि शराब की लत लगने
पर हमेशा नशे के लिए पीना एक अलग बात है किन्तु वहीं खास मौकों पे मनोरंजन के लिए खूब पीना बिल्कुल अलग
बात है। जिस भी घर में शादी का आयोजन होना हो वहां पहले शराब के एरेन्जमेंन्ट की
चिन्ता घरवालों को सताती है। देसी शराब और लुगड़ी को तो घर में ही निकाला या बनाया जाता है किन्तु
अंग्रेजी शराब के लिए स्थानीय लोग भागम-दोड़ी भी करते हैं और ठेकों से शराब भी
धड़ल्ले से बिक जाता है।
पूरे साल के 8-10 महीनों में जब यहां की मेहनतकश जनता खेतों-खलियानों में डटी रहती है तो अपनी थकान और मूड को शादी-ब्याह के समारोहों से बहलाती है और किसी के खुशी में शरीक होने पर खूब शराब का सेवन कर के अच्छा समय बिताना उन के लिए लाजमी बन जाता है।
जैसे-जैसे लाहुल आर्थिक तरक्की की राह पर है वैसे-वैसे शादी-ब्याह के समाराहों में अंग्रेजी शराब के ब्रांड के स्तर में भी बदलाव देखने को मिल रहा है। किसी जमाने में डी.एस.पी. और अरिस्टोक्रेट परोसे जाते थे किन्तु आज प्रिमियम ब्रांड जैसे की रोयल स्टैग और रोयल चैलैन्ज आम हैं। कुछ घरों में धनसम्पदा और दिखावे के चलते अब पीटरस्कोट, बलेण्डरज प्राईड और टीचर तक के मंहगे और हाई ब्रांड भी परोसे जा रहे हैं यानि के लाखों रूपये अब इन मंहगे शराब की खरीददारी में लगाए जा रहे हैं।
अब अंग्रेजी शराब पर फिजूलखर्ची के चलते लाहुल के
अधिकतर इलाकों में ग्राम पंचायतों तथा महिला मण्डलों के सामुहिक प्रयासों द्वारा
कुछ सख्त निर्णय लिए गए हैं जिस में यदि शादी वाले घर में अंग्रेजी शराब और बीयर
को परोसते पाया गया तो 25 हजार रूपये तक का जुर्माना ठोकने का प्रावधान किया गया
है। इस के लिए गाहर,तोद और चांग्सा घाटी के कई पंचायत और
महिला मण्डल बधाई के पात्र हैं। कई बार कुछ धन सम्पन्न लोगों ने पारिवारिक प्रतिष्ठा
के चलते इस तरह के जुर्माने राशी की भरपाई कर नियोजित रूप से अंग्रेजी शराब परोसा
और पंचायत के निर्णयों की धज्जियां भी उड़ायीं किन्तु अब सख्ती होने से व्यापक
असर देखने को मिल रहा है। इस तरह के निर्णयों से वास्तव में जनता का ही फायदा है।
इस से फिजूलखर्ची भी कम हो रही है और लोकल शराब के अस्तित्व को भी उचित संरक्षण
मिल रहा है। स्थानीय शराब की महतता इस
लिए भी है कि यह अग्रेंजी शराब की तुलना में ज्यादा घातक नहीं होता और बोतलों पे
बोतल गट जाने के बाद भी आदमी सुफी हालत में रहता है जबकि उतनी ही मात्रा में
इंगलिश शराब पीने वाले लुढ़क जाते हैं। यानि यह कहें कि शराब के नशे की डिग्री की
तुलना में लाहुली शराब तुरन्त चढ़ती भी और उतर भी जाती है जो कि एक व्यस्त और
जिम्मेदार आदमी के लिए अच्छा भी है।
कई बार अंग्रेजी शराब की भान्ति बीयर को भी शादी- ब्याह में पानी की तरह परोसा जाता है जो कि बेहद गलत है। विशेषकर टीनऐजर अपनी उम्र का ख्याल करते हुए और बड़ों के समुख शिष्टता दिखाते हुए बीयर का सेवन करते हैं और उन की बढ़ती मांग को समारोह में पूरी करना मुश्किल हो जाता है। जैसा कि विदित है कि बीयर कीमती भी होता है और इस में नशे की डिग्री कम होने के कारण इस की खपत की सम्भावना भी ज्यादा रहती है यानि मांग और पूर्ति में सन्तुलन रखना बेहद कठिन हो जाता है। बीयर की बजाए लोकल लुगड़ी या छांग वास्तव में परोसी जानी चाहिए क्योंकि यह एक प्रकार जौ से बनी खुराक से प्रचूर पैय पदार्थ भी होती है और प्यास पर भी नियन्त्रण रखती है।
लाहुल-स्पिति में शराब एक संस्कृति का हिस्सा है
तो यह कहना कुछ हद तक गलत नहीं होगा। यहां के स्थानीय प्रशासन तन्त्र को भी इस
परम्परा के बारे में पूरा ज्ञान है और हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्याओं और प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा पुलिस मेहकमों और एक्साईज डिपार्टमैन्ट को
भी शायद लिखित हिदायत है कि एक्साईज ऐक्ट के दफाओं के अनुपालन
में लाहुल-स्पिति को थोड़ी रियायत दी जाए। इस में यह प्रोविजन है कि
लाहुल-स्पिति की स्थानीय जनजातीय जनता यदि
शादी-विवाह के समारोह हेतू घरों में देसी शराब बनाती है तो एक मात्रा तक
बनाने और ले जाने की छूट भी दी जानी आवश्यक है और इसे गैर कानूनी नहीं माना
जाएगा। यानि इस का तात्पर्य यह भी लगाया जा सकता है कि इस इलाके में शराब यदि
बेचने की बजाए सामुहिक समारोह आदि में सेल्फ-कन्जमशन के लिए है तो गैर-कानूनी
नहीं है।
आज पढ़े लिखे लोगों की संख्या लाहुल-स्पिति में
दिन ब दिन बढ़ रही है और शराब पीने से होने वाली बीमारियों से वह वाकिफ भी हैं।
शराब से न सिर्फ सेहत खराब होती है बल्कि घर भी उजड़ जाते हैं। इसकी लत लगने से
आदमी का मानसिक और शारीरिक सन्तुलन नहीं रहता और धीरे-धीरे वह सब कुछ गंवा सकता
है। लाहुल-स्पिति के सन्दर्भ में यहां की जलवायू और परम्पराओं को देखते हुए शराब
महज कभी-कभार मनोरंजन एवं थकान मिटाने के उदेश्य से यदि जनता पीती है तो गलत नहीं
है किन्तु इसे लत बना कर नशे के लिए रोज पीना सरासर गलत है। शराबी ज्यादा शराब
पीने के चलते समाज में सब की नजरों से गिर जाता है और उस की इज्जत भी धीरे-धीरे
गर्क में चली जाती है।रोजाना शराब पीने से जो आर्थिक नुकसान होता है उसकी भरपाई
करना एक परिवार के लिए बेहद असम्भव होता है।
मैं यहां यह लेख लिख कर शराब और शराबियों की तरफदारी नहीं कर रहा हूं बल्कि लाहुल-स्पिति की इस विशिष्ट शराब पीने की परम्परा पर प्रकाश डाल रहा हूं जो कि बाहरी जनता के लिए भी अदभुत है। बस पीने वालों के कदम नहीं बहकने चाहिए,नेतिकता की डोर को लांघना नहीं चाहिए। साफ शब्दों में कहूं तो मनोरंजनके लिए कभी-कभार पीना उचित है किन्तु नशे के लिए सेवन बेहद घातक है। लाहुल के सन्दर्भ में भी शराब वास्तव में मनोरंजन के लिए ही है और सदियों से हमारे पूर्वजों ने कष्ठ झेल कर जिस तरह जीवन-यापन किया होगा और उन की मेहनत की वजह से आज जिस भूमि पर हम लोग गुजर-बसर कर रहें हैं,तरक्की कर रहे हैं वह दुनिया के लिए उदाहरण है किन्तु शराब के सेवन पर नियन्त्रण रखना हर स्थानीय जिम्मेवार व्यक्ति का कर्तव्य है अन्यथा अगली पीढ़ी उन्हें कोसेगी या उसी का अनुसरण कर गर्क में बढ़ती जाएगी। न पीने वालों के लिए तो बहुत ही अच्छा है किन्तु पीने वालों को इसकी लिमिट रखना बेहद ही आवश्यक है।
1 comment:
कृष्ण कल्पित ने सूक्तियाँ लिखीं हैं , एकाध देख डालिए :
37
स्त्रियां सुलाती हैं
डगमगाते शराबियों को
स्त्रियों ने बचा रखी है
शराबियों की कौम
38
स्त्रियों के आंसुओं से जो बनती है
उस शराब का
कोई जवाब नहीं.
39
कभी नहीं देखा गया
किसी शराबी को
भूख से मरते हुए.
पूरी सीरीज़ यहाँ देखें : http://krishnakalpit.blogspot.in/2007/01/blog-post.html
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