Saturday, November 12, 2011

रोहताँग टनल के अन्दर

प्रायः केलंग में सर्दियों का सप्ताहांत बड़ा लम्बा और बोरिंग होता है . खास कर के जब दूसरा शनिवार आता है. (हिमाचल मे हर माह दूसरे शनिवार को सरकारी काम काज नही होता ) लेकिन हमेशा नहीं . जैसे कि आज की छुट्टी काफी रोमाँचक रही. कुछ बेंकों में निजी काम निपटा कर मैं दोपहर तक पूरी तरह से फ्री हो गया. बेंक मे भी आज आधा दिन ही काम होता है. सो , बेंकर दोस्त मुकेश वैद्या के साथ मिल कर प्लान बनाया कि कहीं घूमने जाया जाए. कहाँ ?

अचानक् खयाल आया कि सिस्सू के एक मित्र संजीव ठाकुर ने ( वो एफ कॉन मे काम करते हैं ) रोहताँग टनल विज़िट् करने का आग्रह किया था. वहाँ मुझे कुछ विभागीय काम भी था. फिर क्या था, मुकेश तो एक दम तय्यार थे. गाड़ी स्टार्ट की , और एक अन्य मित्र अमर लाल के साथ ठीक तीन बजे हम इस बहुचर्चित टनल के नॉर्थ पोर्टल पर खड़े थे. हमारे मार्ग दर्शक थे प्रोजेक्ट के टनल मेनेजर थॉमस रीडेल . बहुत ही विनम्र और भले आदमी , हम जानने के लिए इतने उत्सुक नहीं थे जितना कि वे बताने के लिए........



टीवी पर जो तसवीरें देख रखीं थीं उन्हे असल ज़िन्दगी मे होते देख बहुत रोमाँच होरहा था . हमने बहुत कुछ सीखा . बहुत कुछ जाना. मसलन इस प्रोजेक्ट मे टनल बोरिंग मशीन का प्रयोग नही हो रहा . पारम्परिक तरीक़े से ब्लास्ट करते हुए सुरुंग निकाली जा रही है. नॉर्थ पोर्टल 600 मीटर भीतर पहुँच गया है . साऊथ मे तक़रीबन 1700 मीटर . फिलहाल बहुत लूज़ स्ट्राटा है. लेकिन आज जो हमारे सामने टनल का अंतिम प्वाईंट * फेस* दिख रहा है, बहुत ठोस महसूस हो रहा है . काला और कड़ा. ये रोहताँग की जड़ है.......... मेरे भीतर का कवि सोचता है !



उफ्फ !!



मेरे कवि को अपनी पिछली कविता याद आती है ............ “पहाड, क्या तुम छिद जाओगे ??”

इतना भारी भरकम काम देख कर सुरंग से बाहर आते हुए सोच रहा था ......हमारी क़लम कितनी छोटी है !
(विस्तृत रपट फिर कभी )