हमारा हेलिकॉप्टर तान्दी संगम के ठीक ऊपर पहुँचा है. सामने अपना गाँव सुमनम दिखाई दिया है . अपने शर्न के आँगन में मवेशियों को धूप तापते देख कर बहुत रोमांचित हुआ हूँ. भागा घाटी की ओर मुड़ने से पहले पीर पंजाल के दूसरी ओर ज़ंस्कर रेंज के सिर उठाए भव्य पहाड़ों की झलक मिली है . मैं अनुमान लगाता हूँ कि इन्हीं धवल शिखरों के आँचल में कहीं मयाड़ घाटी होगी. केल्ंग पहुँचते पहुँचते पक्का मन बना लिया है कि चाहे जो हो मयाड़ घाटी ज़रूर जाना है.
केलंग में मेरा स्वागत भारी हिमपात से हुआ . लाहुल यूँ तो मांनसून के हिसाब से रेन –शेडो क्षेत्र मे स्थित है. मानसून पीर पंजाल को प्राय: पार नहीं कर पाता. लेकिन पश्चिमी विक्षोभ (western disturbances) के लिए कोई रुकावट नहीं. सर्दियों में ये बर्फीली हवाएं सीधी घाटी में घुस आती हैं और निकासी नही होने के कारण हफ्तों बरसती रहतीं हैं. उस रात को लगभग दो फीट बरफ पड़ी और अगले सात आठ दिन बादल छाए रहे. फिर एक दिन बढ़िया धूप निकल आई. उस दिन एक घर की छत पर निकल कर कस्बे को निहारने लगा. पूरब की ओर विहंगम लेडी ऑफ केलंग चोटी ताज़ा बरफ में छिप गई थी. रङ्चा के नीचे से कई एवलांच बरबोग, पस्परग और नम्ची गाँवों को धमकाते हुए निकल गए थे. ड्रिल्बुरी खामोश खड़ा था. पश्चिम मे गुषगोह के जुड़वाँ हिमनद मानों दो खाए अघाए बैल जुगाली करते अधलेटे पसरे हों. केलंग टाऊन मुझे कमोवेश वैसा ही दिख रहा है जैसा पन्द्रह साल पहले छोड़ गया था. सुबह उठने पर नथुनों में धुँए की वह चिर परिचित गन्ध घुसी रहती है . यह धुआँ जो कस्बे के ऊपर बादल सा छाया रहता, घरेलू चूल्हों और सरकारी भक्कुओं से निकलता था, तक़रीबन 11 बजे छँटना शुरू हो जाता और यही सरकारी बाबुओं के दफ्तर पहुँचने का समय भी होता. दफ्तरों में स्टीम कोल के भक्कू जलते . उन्ही के ऊपर अल्युमीनियम की केतलियों में चाय उबलती रहती. हिमपात के दिनों में घरों और दफ्तरों में सब से प्राथमिकता वाला काम होता है खुद को गरम बनाए रखना. बहरहाल मेरी प्राथमिकता है मयाड़ घाटी की यात्रा.
(यात्रा जारी रहेगी)
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Monday, October 11, 2010
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3 comments:
janab yatra ka intro confusing hai...helicopter se kahan se va kyon aa rahe ho?
पश्चिम मे गुषगोह के जुड़वाँ हिमनद मानों दो खाए अघाए बैल जुगाली करते अधलेटे पसरे हों
Suparb :)
# लाहुली,
ठण्ड रख. यह प्रोमो है. पिक्चर रिलीज़ होने ही वाली है.
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